एक कहानी....ऐसी भी!!
संसार मे कोई भी चीज कभी खत्म नही होता,इंसानों को छोड़ कर ।
इंसानी जिंदगियां कुछ वर्षों के लिए इस धरती पर फलती फूलती हैं फिर पानी के एक बुलबुले की मानिंद ऐसे विलुप्त हो जाती हैं,मानों वो कभी थी ही नही ।
कुछ लोग जीवन को जिस तरह से तराशते हैं...ये काबिलियत हर किसी के अंदर नही होती।
ज़िंदगी को संवारने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी चीज जो होती है वो है आपकी महत्वकांक्षा ।
अगर आपके मन मे किसी चीज की आकांक्षा है तो आप बहुत लंबा सफर तय कर।सकते हैं..... पर हां इसके लिए आआपको आपके मन मे मलाल रखने वाली शै को किस शल्य चिकित्सा पद्धति से बाहर निकालने की जरूरत पड़ेगी।
बचपन मे एक कहानी पढा था...."कबूतर और मधुमक्खियां"
ये रानी मधु मक्खी की जिंदगी के प्रति जिजीविषा ही थी जो वो कबूतर के सूखे पत्ते लाने तक जल की धारा के साथ संघर्ष करती रही ।
पर उस कबूतर को क्या कहें?
शिकारी के भय से उस मूर्ख ने स्वयं को छुपा लिया,आंखे बंद कर के ।
क्या इससे वो शिकारी के बाण से बच सकता था ?
बिल्कुल नही अगर मधुमक्खियों के झुंड ने उस शिकारी पर एक साथ हमला न किया होता तो ।
हम इंसानों की ज़िंदगी भी इनसे कहाँ भिन्न है ?
कुछ इंसानी खोल में छुपे हुए भेड़िए भी तो सदैव ताक में रहते हैं....पर उनकी नज़रें किसी कबूतर पर नही ,बल्कि रानी मधुमक्खी पर होती है ।
और आए दिन अखबारों की बिक्री बढ़ाते हुए दिख जाते हैं ऐसे शिकारी ।
एक बार की बात है...बहुत पुरानी बात ।
उस ज़माने में एक राजा हुआ करते थे....नाम कुछ ठीक ठीक याद नही पर उनकी विशेषता ये थी कि वो पशु पक्षियों, किट पतंगों हर किसी की भाषा बुझते थे।
एक दिन दोपहर के भोजन के समय वे भोजन कर रहे थे अन्न के कुछ कण उनके थाली के आस पास गिरे हुए थे ।
और अन्न के उन दानों को खाने के लिए दो चींटियां आपस मे लड़ रही थीं ।
पहली चींटी जो काली थी उससे भूरी रंग वाली चींटी बड़े ही तेज स्वर में कह रही थी "तुम्हारे साहस की तो दाद देनी होगी ,तुम डोम जात की चींटी हो कर के महाराज के थाली के इतने करीब आ गई खाना खाने?"
तो काली वाली बोली "बहन जात पात कुछ नही होता चलो इसी में आपस मे बांट कर हम दोनों खा लेते हैं!"
इस पर भूरी चींटी बोली "राम राम राम राम मैं उच्च कुल की ब्राह्मण हूँ और तुम्हारे साथ खाना खाऊँगी ,इतना कह कर भूरी ने काली को एक जोर का धक्का दे दिया जिससे काली चींटी कुछ दूर तक लुढ़कते हुए चली गई"
राजन भोजन करना छोड़ कर ये पूरा मामला देख रहे थे और अंत मे जोर से ठहाके लगा कर हंसने लगे ।
रानी भी पास में बैठी थीं.... उन्हें महाराज का यूँ अचानक से हंसना बहुत अजीब लगा ।
वो पूछ बैठीं... " महाराज क्या बात है बताइये?"
आप ऐसे अचानक क्यों हंसे ?
राजा बोले अरे महारानी ऐसी कोई बात नही है..... वो कुछ बात याद आ गई इसीलिए हंसी छूट गई मेरी ।
पर महारानी भी तो आखिर एक पत्नी थीं....उन्हें अपना संदेह दूर करना था ।
इसीलिए भोजन छोड़ कर अपने कोपभवन में घुस गईं ।
खाना पीना बन्द कर दिया ।
राजा बहुत चिंतित हुए.... वे भारी विपदा में पड़े थे ।
महाराज को उनके इस वरदान को देते समय ब्रह्मा जी बोले थे जिस दिन तुम ये रहस्य किसी को बताओगे तुम शिलाकृति बन जाओगे ।
अब महाराज अगर बताते हैं तो उनका शिला बनना तय था.....नही बताते तो रानी अपने प्राणों की आहुति देने को तत्पर थीं ।
अंत मे स्त्री प्रेम के वशीभूत महाराज ने निर्णय लिया कि चाहे जो हो जाए ...मैंने महारानी से प्रेम किया है और प्रेम को अपने मान मर्यादा की रक्षा अपनी जान देकर भी चुकानी पड़ती है ।
संध्या काल मे राजा कोपभवन में प्रवेश किये और रानी के पास गए रानी का रो रो कर हाल बुरा था,भूखे प्यासे उनकी हालत और भी गंभीर थी।
राजा ये दृश्य देख कर विचलित घल गए और किसी तरह से अपने आंसुओ को आंखों के अंदर ही रोका।
फिर बोले "महारानी मैं आपसे प्रेम... बहुत प्रेम करता हूँ!"
और प्रेम जीवन लेता नही बल्कि जीवन देता है त्याग करता है ।
"मैं आपसे जीत कर जाऊंगा भी तो संसार के किस कोने में मुझे स्थान मिलेगा बताइये?"
अतः मैने निर्णय लिया है कि कल गंगा नदी के तट पर मैं आपको वो रहस्य की बात बताऊंगा की खाते खाते आखिर क्यों मेरी हंसी छूट गई थी ।
लेकिन महारानी एक बात जान लीजिए....उस रहस्य को खोलने के साथ ही मैं पत्थर की मूर्ति में बदल जाऊंगा!
रानी खुश हो चुकी थीं अब तक ,चलो महाराज उनके जिद के आगे आखिर झुक तो गए इसी लिए महारानी चहकते हुए बोली "आप पत्थर बने या मिट्टी मुझे वो सब कुछ नही मालूम"
मुझे तो बस जल्दी से वो सच बता दीजिए ।
राजन बोले ठीक है महारानी कल सुबह गंगा तट पर आपको समस्त प्रजा के सामने यह रहस्य बताऊंगा ।
अब चलिए कुछ खा लिजिये.... आज की रात्रि हमारे जीवन की आखिरी रात्रि है इसके बाद फिर कभी ये मौका न मिलेगा हमें ।
आज मैं आपके हाथों से भोजन करना चाहूंगा।
महारानी को भी भूख लगी थी,वे झटपट तैयार हो गईं ।
कैसा था राजा का मन और कैसी थीं महारानी.....क्या वास्तव में ये प्रेमी जोड़े थे ?
महारानी जो कभी महाराज के साथ प्रेमालाप करते समय जन्म जन्मांतर की बातें किया करती थीं आज उन्हें ही महाराज के जीवन का कोई मोह नही था।
खैर आज महाराज के जीवन की आखिरी रात्रि थी....वे ज्यादा से ज्यादा समय अपनी रानी के साथ बिताना चाहते थे।
और रानी थीं कि बड़े ही बेसब्री से सुबह होने की प्रतीक्षा कर रही थीं ।
सुबह हुई राजा प्रत्येक दिन की तरह बिस्तर से उठे और अपने कुल देवता को नमन किया और फिर महारानी को लेकर गंगा नदी के तट पर पहुंचे जहां पर उनके महामंत्री एक दिन पहले ही लोगों को इकट्ठा होने का आदेश दे चुके थे ।
हज़ारों की तादाद में भीड़ इक्कठी थी....और रानी बार बार कह रही थीं महाराज से महाराज अब तो बताइये क्या जरूरत थी इतने आडम्बर की ?
तभी राजा ने देखा गंगा के किनारे किनारे एक बकरी और एक बकरा (बोंतु) जल धारा के साथ साथ दौड़ रहे हैं ।
बकरी ,अपने बकरे से बोल रही है " जाओ न पानी मे देखो कितना सुंदर और पका हुआ सेब बह कर जा रहा है,तुम मेरे लिए लाते क्यों नही ?"
बकरा बोला...अरे मुझे तैरना भी नही आता तेरे सेब के चक्कर मे मैं अगर मैं डूब कर मर गया तो ?
बकरी बोली...तुम मरो चाहे जिओ मुझे कुछ नही मालूम,मुझे वो सेब चाहिए मतलब चाहिए ।
अब बकरा जो बोला ये सुन कर महाराज की आंखे खुली की खुली रह गईं ।
बकरे ने कहा "मुझे भी इस राजा की तरह बेवकूफ समझती हो क्या जो अपनी रानी के एक बेकार से जिद के कारण आज पत्थर बनने आया है।"
राजा के पत्थर बनने के कुछ ही दिन बाद रानी किसी और राजा से विवाह कर के अपना राज पाट संभालेगी और राजा यहां गंगा किनारे युगों युगों तक पत्थर बने पड़े रहेंगे ।
तु भी तो यही करेगी...मेरे डूब के मरने के बाद ही कोई नया बकरा तलाश लेगी ।
राजा की आंखे अब तक खुल चुकी थी...उन्होंने रानी को अपने पास बुलाया और कहा "महारानी आपको रहस्य जानने का बहुत शौक है न?"
आइये आपको वो रहस्य बताता हूँ ।
रानी खुशी खुशी दौड़ती हुई राजा के पास पहुंची और बोली "जल्दी बताइये न मुझसे सब्र नही हो रहा"
महाराज बोले...अरे हत्यारिन तुझे ये भी डर नही की मेरे मृत्यु का जो पाप तेरे सिर पर चढ़ेगा उसका दंड तुझे उस लोक में भुगतना पड़ेगा ।
और फिर महाराज ने समस्त प्रजा के सामने अपनी महारानी का परित्याग कर दिया ।
इच्छाएं और चाहतों का कोई अंत नही ना ही किसी जिद का कोई अंत है....पर महाराज की आंखे उस बकरे ने खोल दी...महाराज प्रेम की बलि वेदी पर स्वयं को अर्पित करने का मन बना ही चुके थे ।
ये कथा आज के समाज के लिए भी सटीक बैठती है...क्या ईश्वर किसी बकरे का रूप धारण कर के किसी राजा को बचाने इस कलियुग आते हैं.....???
ये सबसे बड़ा सवाल है
Supriya Pathak
18-Oct-2022 10:20 PM
Aap achha likhate han
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Pratikhya Priyadarshini
18-Oct-2022 01:08 AM
Achha likha hai 💐
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Abeer
17-Oct-2022 09:04 AM
Behtarin rachana
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